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__चौथा भाग : चौथा कोष्टक
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मुमुक्षु-क्रोध-मान-माया-लोभ का वमन-स्याग करनेवाला होता है, यह सर्वज्ञ-भगवान् की मान्यता है । खंतो अ मद्दवऽज्जव-विमुत्तया तह अदीणया-तितिक्खा । आवस्सगपरिसुद्धि अ, होति भिक्खस्स लिंगाई ॥
-रावकालिक नियुक्ति ३४६ क्षमा, विनम्रता, सरलता, निर्लोभता, अदीनता, तितिक्षा और आवश्यक क्रियाओं की परिशुद्धि-वे सब भिक्ष के वास्तविक चिन्ह है। इह खलु थेरेहिं भगवंतेहि वारस भिक्खुपडिमाओ, पन्नत्ताओ।
-भगवती ॥१ स्थविर-भगवन्तों ने बारह भिक्ष प्रतिमायें साधुओं की प्रतिज्ञायें कही हैं-१ मासिकी, २ द्विमासिकी, ३ निमामिकी, ४ चातुर्मासिकी, ५ पंचमासिको, ६ घणमासिकी, ७ सप्तमासिकी, ८ प्रथमासप्तरात्रिदिवा, ६ द्वितीया सप्तरात्रिदिवा, १० तृतीयासप्त रात्रिदिवा, ११ अहोरात्रिदिवा, १२ एक रात्रि वी।