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चौथा भाग : नौथा कोष्ठक
वे अनगार भगवंत चाहे वसोले से काटे जाएं, चाहे चन्दन से चर्च जाएं', समभाव रहते हैं। मिट्टी के लेले एवं कंचन के प्रति समानस्ति रखते हैं । सुखदुःख में समान रहते हैं । इहलोक-परलोक के विषय में प्रतिबन्धरहित हैं । संसार के पारगामी हैं एवं कामों को क्षय करने के लिए उद्यत होकर विहार करते हैं।