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________________ २४२ वक्तृत्वकला के बीच राजा और गरीब को, समझे एक समान । तिनको साधु कहत है,गुरु नानक निरवान।। साधु सत का सूपड़ा, सत ही सत भाखंत । पकड़ पछाड़े तूतड़ा, कण ही कण राखंत ।। मांठ दाम बांधे नहीं, नहिं नारी से नेह । मई कोर वा सा के, हम लग पो ह । ...कबीर साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं । जो धन का भूखा बने, वो फिर साधु नाहि । साधु व सो साधै काया, कोड़ी एक न राख माया । ल्यावै सो देवे चुकाय, वासी रहै न कुत्ता खाय । जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान । मोल' करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान । ---कबीर १८. सूफी साधु कौन ? सूफी वह है, जिसके दिल में सच्चाई और अमल में इखलास हो । ... -अब्दुलहसन १६. शैले-शैले न माणिक्य, मौक्तिक न गजे-गजे । साधवा नहि सर्वत्र, चन्दन म बने-बने । -चाणक्यनीति २ बैंस हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते. हर एक हाथी के सिर में मोती नहीं होते और हर एक बम में चन्दन नहीं होते । वैसे सभी जगह सच्चे मान भी नही होत ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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