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________________ वक्तृत्वकला के बीज विद्वान् ब्रह्मचर्यादि किसी भी आश्रम से, रुग्ण या दुःखित किसी भी अवस्था में प्रब्रजित हो सकता है । ५. दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पई निग्रगंधाणं वा निम्गंधीणं वा पब्वावित्तए तंजहा - पाईणं वा उदीणं वा । स्थानांग २०१ २३० दो दिशाओं में साधु-साध्वियों को दीक्षित करना कल्पता है— पूर्व और उत्तर । ६. तओ णो कप्पइ पन्दावेत्तए, जहा - पंडए, वाइए, कीवे । --धागा :४२ तीनों को दीक्षा देना नहीं कल्पता -जन्म के नंपुसक को, वायु की व्याधि से जिसका शरीर इतना मोटा बन गया हो कि वह उठ बैठ भी नहीं सकता हो, उसको तथा क्लीब को । (क्लीब चार प्रकार का होता है-- १दृष्टिक्लीब, २ शब्दक्लीब, ३ व्यादिग्धक्लीब, ४ निमन्त्रणाक्लीब | ) ग्रन्थों में १८ प्रकार के पुरुष तथा बीस प्रकार की स्त्रियाँ भी दीक्षा के अयोग्य कहे हैं । -- स्थानांग ३।४।२०२ ठीक ८. पच्चयत्थं चं लोगस्स, नाणाविहिविगप्पणं । - उत्तराध्ययन २३१३२ विकल्प जनसाधारण में प्रत्यय धर्मो के वेष आदि के नाना (परिचय पहिचान) के लिए हैं। ६. भावे अ असंजमो सत्यं । - आचारांगनियुक्ति १६ भावदृष्टि से संसार में असंयम ही सबसे बड़ा शस्त्र है ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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