________________
१. देवलोगसभाणी उ परिआओ महेसिणं । महानरयसारियो |
रयाणं अरवाणं च
संयम में सुख-दुःख
संयम में अनुरक्त महिषियों के लिए तो चारित्र-पर्याय स्वर्ग के समान है एवं अरक्तों के लिए घोर नरक के समान है ।
-
- दशकालिक - चूर्णि १।१०
—
२. साधु मारग सांकड़ा, जैसा पिंडखजूर
चढ़े तो चाखे प्रेम रस पड़े तो चकनाचूर ।
"
२२८
हिन्दी वहा
३. नारति सहइ वीरे वीरे न सहइ रति
-- आचारांग श६
वीरपुरुष न तो संग्रम में अरति (दार(जगी) को सहन करता है और न असंयम में रति (खुशी) को सहन करता है ।