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चौथा भाग : तीसरा कोष्ठक
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विश्व सृष्टि का सार धर्म है, धर्म का सार ज्ञान (सभ्यग्-वोध ) है, ज्ञान का सार संयम है, और संयम का सार निर्माण ।
/ ६. संजमहेउ देहो, घारिज्जइ सो कओ र सदभावे ।
संजमफाइ
देहारिलाइ
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-- ओषनियुक्ति गाथा ४७
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यह देह संयम के लिए हो धारा जाता है, क्योंकि देह विना संयम नहीं रह सकता का संयम की वृद्धि के लिए ही देहका पालन इष्ट है।