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________________ चौथा भाग : चौथा काष्ठरः (३) राजा, (४) गायापति, (५) शरीर (सप-संयम आदि के अनुष्ठान शरीर से होते हैं)। संयम का स्वरूप :-. निन्नेहा निल्लोहा, निम्मोहा निम्वियार-निक्कलुसा । निम्भय-निरासभावा, पवज्जा एरिसा भणिया ।। | सत्तु-मित्त य समा, पसंस-निंदा अलद्धि-लद्धिसमा । तण-कणए समभावा, पवज्जा एरिसा भणिया ।।४७ उत्तम-मज्झिमगेहे, दरिद्दे ईसरे निरापेक्खा । सबसगहितपिगड़ा, पवज्जा एरिसा भणिया ॥१८॥ षप्राभूत २ प्रव्रज्या अर्थात् रायम को गांव में, न म्लेन इ.ना, न लोभ होता, न मोह झोता, न किंवार होता, न कलुपभाव होता, न भए हाता खो न किसी में शा हो उसमें शत्रुमित्र, प्रशा-Ti::, लायन जर तुण-नम:: मम: । भात्र से दस जा। । । प्राय ग भी घरों से Fre. i है। वहाँ बह-शीत व और गरीब-धनवान पं. मदमही जाता ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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