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________________ चौथा कोष्ठक संयम १. उवसमसारं खु सामपणं । बृहत्कल्प सूत्र ११३५ श्रमणत्व का सार ई उपशम । संयम: खलु जीवनम् । -आचार्य श्रीतुलसी संयम ही जीवन है। ३. संयमी दि महामन्त्र-स्त्राता मवंत्र देहिनाम् । तत्त्वामृत प्राणियों की रक्षा करनेवाला महामंत्र एक सयम ही है । , ४. श्रगणत्वमिदं रमणीयतरम । -सुभाषितरत्नसंदोह यह गाना -मंचम अनेवः गुण, गुक्त होने से बहुत रमगी। है । जाइ सद्धाइ निक्खंतो, परियायट्ठाणमुत्तम, तमेव अणुपालिज्जा। -वशवकालिक ८१ जिन श्रद्धा के साथ संसार में निकलकर उत्तम संयम लिया है। जमी श्रद्धा के साथ पालना चाहिए ! धम्म चरमाणस पंच निस्साटाणा पणत्ता, तं जहा-- छक्काए, गणो, राया, गिवई, सरीरं। -स्थानांग ५।३३।४४७ संयमधर्म, में विचरनेवाले (मुनि) को पांच निवास्थानअवलंबन कहे हैं- (१) छ: काया के जीव, (:) गण-गमछ,
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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