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महावत
१. पंच महब्धया पपण त्ता, तं जहा—सब्वाओ पाणाइबायाओ वेरमणं । जाव सव्वाओ परिग्गहामी वरमणं ।।
__ -भ्यानांग ५।१।३८४ भगवान ने पांच महाव्रत कहे हैं--(१) सर्वथा जीव-हिंसा से विरत होना, (२) सर्वथा झुठ मे विस्त होना, (३) सर्वथा चोरी से विरत होना, (४) सबंधा अब्रह्मचर्य मे घिरत होना,
(५) सर्वधा परिग्रह से विरत होना। २. अहिंसा-मस्याऽस्तेय-ब्रह्मचर्याऽपरिपहा यमा: ।
पातंजल-योगवर्शन २०३० (१) अहिंसा, (२) सत्य, (३) अस्तेय, (४) ब्रह्मचर्य, (५)
अपरिग्रह ये पांच यम हैं। ३. एते जाति-देश-काल-समयानवच्छिन्नाः । सार्वभौमा महाव्रतम् ।।
• --पातंजल-योगवर्शन २१३१ ये यम जाति, देश, काल, समय के अपवाद से रहित हो और
सभी अयस्थाओं में पाले जायें तो महायत कहलाते हैं । ४. इच्चेइयाई पंच महत्वयाइराइभायणवेरमणछट्ठाई। अत्तहियट्टयाए उवसंपज्जित्ताणं विहरामि ।।
-..इंशकालिक ४
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