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वक्तृत्वकला के बीज
भिक्ष ओं के भय से भोजन बनाना नहीं छोड़ते, टिड्डियों के भय से खेती करना नहीं छोड़ते, दुर्घटना के भय से मोटर या रेल आदि की सवारी करमा नहीं छोड़ते, नुकसान के भय से मार कर हों छोड़ सभा मक्खियों के भय से दूध पीना नहीं छोड़ते, वैसे ही टटने के भय से व्रत लना भी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि टूटे इंजन, फूटे बर्तन एव फटे वस्त्र की तरह दूषित व्रत भी प्रायश्चित्त द्वारा पुन: निर्मल हो
सकते हैं। ८. सर्वप्रयत्नेन चातुर्मासे यती भवेत् । ... भविष्यासरपुराण
चतुर्मास के समय सभी प्रकार के प्रयत्नों से कुछ न कुछ व्रत
नियम अवश्य करना चाहिए । ६. गिहिबासे वि सुब्वए।
__- --उत्तराध्ययन १२४ धर्मशिक्षासम्पन्न महस्य गृहबास में भी सुबती है। १०. एकादशीव्रत का ढोंग --- (क) भोर उठ स्नान कियो, सेर पस्को दुध पिया,
सैंकड़ों सिंघाड़ें खाये, चित्त तो सवादी है। दोपहरी में भांग छानी, पाव चोनी सेर पानी,
सोलह शक्करकंदी खाई, खोद्योड़ी नवादी है। पाब पक्की बरफी खाई, पाव पक्का पेड़ा खाया,
बीसों अमरूद खाये, आई नी वादी है। कहे 'ब्रह्मदत्त' ऐसो त नित्य होय यारों ।
कहने की एकादशी पं द्वादशी की दादी है ।।