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________________ 26 १. आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः । आचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते । २. अनाचरतो मनोरथाः स्वप्न राज्यसमाः । आचारहीन ४. नोतिया क्यामृत आचरण नहीं करनेवालों के मनोरथ स्वप्नराज्य के समान है। ३. विचार की भूलवाला मूर्ख हैं तो आचार की भूलवाला दुष्ट (पापी) है ! - एक विचारक चन्दन जन परिचय बढ़ा, त्यों-त्यों बढ़ा विकार । हानि पड़ी आचार में, ज्यों-ज्यों बढ़ा प्रचार ॥ - वाशिष्ठस्मृति - ६३ १६२ ५. उसका इरादा अच्छा है, यह व्यर्थ है- यदि वह अच्छा काम न करे ! ६. मन राजा सों करम कमेड़ी सो । - राजस्थानी कहावत
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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