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विवेकी
१. कायं परोपकाराय, धारयन्ति विवेकिनः ।
-धर्मफल्पत्रम विधेकी पुरुष परोपकार के लिए ही शरीर धारण करता है । २. विवेक दृष्ट्या चरतां जनानां,
श्रियो न किचिद् विपदो न किंचिद् । विवेकपूर्वक आचरण करनेवालों के लिए संपत्ति हर्षदायक नहीं होती और विपत्ति दुःखदायफ नहीं होती। विवेकिनमनुप्राप्ता, गुणा यान्ति मनोजताम् । सुतरां रत्नमाभाति, त्रामीकरनियोजितम् ।।
-चाणक्यनीति १६९ मोने में जड़े हुए. रत्नों की तरह गुण विवेकी को पाकर
अत्यधिक चमकने लगते हैं। ४. विवे किनां विवेकस्य, फलं ह्यौचित्यबर्तनम् ।
... त्रिषष्टिशलाका ३१ उचित व्यवहार करना हो विवेकियों के विवेक का फल है ।