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१. अविवेकः परमापदां पदम् । अविवेक आपत्तियों का मुख्य स्थान है । २. नास्त्य विवेकात् परः प्राणिनां शत्रुः ।
४.
अविवेक
- महाकवि मारवि
अविवेक से बढ़कर प्राणियों का कोई शत्रु नहीं है । ३. जड़ जड़ता के वश पड़े करते क्रिया अनेक | क्रिया विक्रिया हो रही, चन्दन बिना विवेक !
,
- नीतिवाक्यामृत १०१४५.
५
- तावती:
धन जोवन अरु ठाकरी, तिण ऊपर अविवेक । ऐ च्यारू' मेला हु, (तो) अनरथ करें अनेक ||