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सुधा भाग पहला कोष्ठक
म. अग्नि के अंश बिना फूंक नहीं लगती, श्वास के बिना दवा नहीं लगती और कान आदि के बिना सुनना - देखना आदि कार्य नहीं होता – ऐसे ही विवेक के बिना व्यवहारिक या धार्मिक उन्नति नहीं होती । खाना पीना, पहनना, ओढ़ना, सोना, उठना बैठना, बोलना, चलना, पढ़ता, लिखना, हंसना, रोना आदि व्यवहारिक कार्य तथा ज्ञानचर्चा, व्याख्यान, सामायिक, पौषध, गुरुवन्दन, सेवा-भक्ति, तपस्या एवं दान, आदि धार्मिक कार्य करना, इन सभी कार्यों में विवेक की जरूरत है। किसी ने कहा भी है
आलस्य में पशुला, क्रिया में जीवन और विवेक में मनुष्यता है । ववकी को उपदेश नहीं लगता ।
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