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चौथा भाग: तीसरा कोष्ठक
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धर्म का स्वरूप आचार है। सदाचार से युक्त पुरुष ही संत है । संतों का जो जीवनक्रम है, वही आचार है ।
७.
आचाराल्लभते ह्यायु- राचासदीप्सिताः प्रजाः । आचाराद्धनमक्षय्य -माचारो
हन्त्यलक्षणम् ।।
--- मनुस्मृति ४।१५६
उत्तम आचार से पूर्णआयु इच्छित सन्तान और अक्षयधन प्राप्त होता है एवं बुराइयों का नाश होता है ।
८. सदाचार के तीन फल हैं
(१) लोक में कोर्ति बढ़ती है, (२) सम्पत्ति की वृद्धि होती है, (३) मरने के बाद सुगति मिलती है ।
2. आचारः कुलमारख्याति, वपुराख्याति भोजनम् । संभ्रमः स्नेहमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ॥
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आचार व्यक्ति का कुल बतलाता है और शरीर भोजन (खुराक) बतलाता है । संभ्रम स्नेह का और भाषण देश का परिचय देता है।
१०. मनुष्यों के कर्म उनके विचारों के सर्वाधिक
परिचायक हैं ।
सदाचार बुराचार -
११. पंचविहं आयारे पण्णत्ते, तं जहा
णाणायारे, दसंणायारे,
विरियायारे ।
चरितायारे, तवायारे,
- स्थानांग ५।२२४३२
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