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________________ चौथा भाग: तीसरा कोष्ठक १८५ धर्म का स्वरूप आचार है। सदाचार से युक्त पुरुष ही संत है । संतों का जो जीवनक्रम है, वही आचार है । ७. आचाराल्लभते ह्यायु- राचासदीप्सिताः प्रजाः । आचाराद्धनमक्षय्य -माचारो हन्त्यलक्षणम् ।। --- मनुस्मृति ४।१५६ उत्तम आचार से पूर्णआयु इच्छित सन्तान और अक्षयधन प्राप्त होता है एवं बुराइयों का नाश होता है । ८. सदाचार के तीन फल हैं (१) लोक में कोर्ति बढ़ती है, (२) सम्पत्ति की वृद्धि होती है, (३) मरने के बाद सुगति मिलती है । 2. आचारः कुलमारख्याति, वपुराख्याति भोजनम् । संभ्रमः स्नेहमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ॥ P आचार व्यक्ति का कुल बतलाता है और शरीर भोजन (खुराक) बतलाता है । संभ्रम स्नेह का और भाषण देश का परिचय देता है। १०. मनुष्यों के कर्म उनके विचारों के सर्वाधिक परिचायक हैं । सदाचार बुराचार - ११. पंचविहं आयारे पण्णत्ते, तं जहा णाणायारे, दसंणायारे, विरियायारे । चरितायारे, तवायारे, - स्थानांग ५।२२४३२ .
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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