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वक्तृत्वकला के बीज
पाँच प्रकार का आचार कहा है
(१) ज्ञानाचार – ज्ञान को विधियुक्त पढ़ना ।
(२) दर्शनाचार - शंका आदि दोषों को त्यागकर शुद्ध सम्यक्त्व
का आराधन करना ।
(३) चारित्राचार – समिति गुप्ति का शुद्ध पालन करना ।
(४) तपआचार - आत्मकल्याण के लिए बारह प्रकार की
तपस्या करना |
(५) वीर्याचार-- धार्मिक कार्यों में शक्ति लगाना ।
१२. सदाचार- दुराचार -
सदाचार सोना है, दुराचार कथीर ( रांगा ) है | सदाचार स्वर्ग की सड़क है, दुराचार नरक का द्वार है । सदाचार सुख का खजाना है, दुराचार दुःख का पहाड़ है । सदाचार सच्चा श्रृंगार है, दुराचार जाज्वल्यमान अंगार है ।
सदाचार सच्ची श्रीमत्ता है, दुराचार दरिद्रता है । सदाचार सच्चा भूषण है, दुराचार भारी दूषण है । सदाचार सच्ची विद्वित्ता है, दुराचार निरीमूर्खता है । सदाचार सच्चा मित्र है, दुराचार कट्टर शत्रु है ।
- एक विचारक
१३. सदाचार के बिना जीवन विटामिनशुन्य भोजन है । १४. सुना है- बूढ़े सत्य ने अपने जवान और इकलौते बेटे सदाचार की आकस्मिक मौत से दुखी होकर आत्महत्या करली है ।
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