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________________ १८६ वक्तृत्वकला के बीज पाँच प्रकार का आचार कहा है (१) ज्ञानाचार – ज्ञान को विधियुक्त पढ़ना । (२) दर्शनाचार - शंका आदि दोषों को त्यागकर शुद्ध सम्यक्त्व का आराधन करना । (३) चारित्राचार – समिति गुप्ति का शुद्ध पालन करना । (४) तपआचार - आत्मकल्याण के लिए बारह प्रकार की तपस्या करना | (५) वीर्याचार-- धार्मिक कार्यों में शक्ति लगाना । १२. सदाचार- दुराचार - सदाचार सोना है, दुराचार कथीर ( रांगा ) है | सदाचार स्वर्ग की सड़क है, दुराचार नरक का द्वार है । सदाचार सुख का खजाना है, दुराचार दुःख का पहाड़ है । सदाचार सच्चा श्रृंगार है, दुराचार जाज्वल्यमान अंगार है । सदाचार सच्ची श्रीमत्ता है, दुराचार दरिद्रता है । सदाचार सच्चा भूषण है, दुराचार भारी दूषण है । सदाचार सच्ची विद्वित्ता है, दुराचार निरीमूर्खता है । सदाचार सच्चा मित्र है, दुराचार कट्टर शत्रु है । - एक विचारक १३. सदाचार के बिना जीवन विटामिनशुन्य भोजन है । १४. सुना है- बूढ़े सत्य ने अपने जवान और इकलौते बेटे सदाचार की आकस्मिक मौत से दुखी होकर आत्महत्या करली है । 7
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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