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आचार (आचरण)
१. शीलवृत्तफलं श्रु तम् । महाभारत, सभापर्व ५।१२३
ज्ञान का फल शील एवं आचार है। २. सारो परूवणाए चरणं, तस्स वि य होइ निब्वाणं ।
-माचारांगनियुक्ति, गाथा १७ परूपणा का सार है-चग और आच२५ का सार (अन्तिमफल) है—निर्माण । अंगाणं कि सारो ? आयारो।
-आधारांगनियुक्ति गाथा १६ जिनवाणी (अंगसाहित्य) का क्या सार है ? 'आचार' ! ४. जीवाहारो भषणइ आयारो।
—वशवकालिक नियुक्ति २१५ तप-संयमरूप आचार का मूल आधार आत्मा (आत्मश्रद्धा)
ही है। ५. आचार: प्रथमो धर्मो, नृणां श्रेयस्करो महान् ।
–यजुर्वेद, मनुस्मृति १११३८ उत्तम आचार ही सबसे पहला धर्म है और मनुष्यों के लिए महानकल्याणकारी है। आचारलक्षणो धर्मः, सन्तश्चारित्रलक्षणाः । साधूनां च यथावृत्त-मतदाचारलक्षणम् ।।
--महाभारत अनुशासनपर्व, अध्याय १०४