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________________ १८२ वक्तृत्वकला के बीज ५. पंचविहे पच्चवखाणे पण्णत्ते, तं जहा - (१) सद्दहणसुद्ध, (२) विणयसुद्ध, (३) अणुभासणासुद्ध, (४) अणुपालणा सुद्ध, (५) भावसुद्ध। -स्थानांग ५।३ प्रत्याख्यान पांव प्रकार का कहा है(१) श्रद्धान् शुद्ध-प्रत्याख्यान में पूरी पूरी श्रद्धा रखना । (२) विनय शुद्ध-प्रत्याख्यान गुरु के सम्मुख विनयपूर्वक करना। (३) अनुभाषणाशुभु--गुरु के पीछे से प्रत्याख्यान का पाठ शुद्धरूप से स्पष्ट बोलना । (४) अनुपालनाशुद्ध-संकट के समय प्रत्याख्यान का शुद्ध पालन करना तथा विपत्तिकाल में भी उसे नहीं तोड़ना । (५) भावशुद्ध .. प्रत्याख्यान के प्रति शुद्धभाव रखना, दूषितभान न होने देना। दसबिहे पच्चखाणे पण्णत्ते, तं जहाअणागय-मइक्कतं, कोडीसहियं नियंटियं चेव । सागामणागारं, परिमाणकार्ड निरवसेसे । संकेयं चैव अद्वाए, पच्चक्खाणं भवे दराहा ।। .-स्थामांग १०१७४८ तया भगवती ७।२ दस प्रत्यास्थान कहे हैं-- (१) अनागतप्रत्यारूपान', (२) अतिक्रान्तप्रत्याख्यान, (३) कोटिसहितप्रत्याख्यान, (४) नियन्त्रितप्रत्याख्यान, (५) सागारप्रत्याख्यान, (६) अनागारप्रत्याख्यान, (७) परिमाणकृतप्रत्याख्यान', (८) निरवशेषप्रत्याख्यान, (९) संकेतप्रत्याख्यान, (१०) अद्धाप्रत्याख्यान ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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