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त्यागी
१. वत्थागंघमलंकारं इत्थिओ सणाणि य । अच्छन्दा जे न भुजंति, न से चाइति बुच्चइ ॥ जेय कते पिए भोए, लद्ध विपिट्ठि कुब्बइ, साहीणे चयइ भोए, से हु चाइति बुच्चद || - दशवेकालिक २।२-३ वस्त्र, सुगंधित द्रव्य, अलंकार, स्त्री और शयन, जो इन चीजों को विवशता से नहीं भोगता - वह त्यागी सच्चा त्यागी वही है, जो मनोहर एवं प्रिय होकर भी पीठ दिखाता है ।
२. नहि देहभृतां वाक्यं त्यक्तु कर्माण्यशेषतः ।
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किंतु कर्मफलत्यागी, स त्यागी त्यभिधीयते ॥
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- गीता० १८१११ समस्त कर्मफलों का त्याग कर देना देहधारियों के लिये वाक्य नहीं है, अतः कर्मफलों में ज्ञासक्ति ममता का त्याग करनेवाला ही वास्तव में त्यागी है !
३. त्याग करता हूं फिर भी जो जलता क्यों रहता है ? देख ! फल की आशा तो नहीं है ?
४. क्रोध-लोभ- भय आदि के वश त्याग करनेवाला वास्तव में त्यागी नहीं है !
: अप्राप्तेऽर्थे भवति सर्वोऽमि त्यागी |
नहीं है, लेकिन भोगों को प्राप्त
- नीतिवाक्यामृत
अप्राप्त वस्तु का त्यागी हर एक हो सकता है ।
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