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चौथा भाग : तीसरा कोष्ठक
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जब तक निरपेक्ष त्याग नहीं होता, तब तक साधक की चित्तशुद्धि नहीं होती और जब तक चित्तशुद्धि (उपयोग की निर्मलता
नहीं होती. तब तक कर्मक्षय कैसे हो सकता है ? ३. बाहिरचाओ विहलो, अब्भतरगंथजुत्तस्स ।
जिसके आभ्यन्तर में ग्रन्थि (परिग्रह) है, उसका बाह्मत्याग व्यर्थ है।