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________________ ૨૭૪ बक्तृत्वकला के बीज 15 शास्त्र पढ़कर भी वे मूर्ख हैं, जो तदनुसार क्रिया (चारिण) का अनुसरण नहीं करते। वास्तव में जो ज्ञानपूर्वक क्रिया करता है, वाकेन बागियों का रोग नहीं मिटता, उसका सेवन करना जरूरी है । ८. गति बिना पथज्ञोपि नाप्नोति पुरमीस्तिम् । गन्तव्य स्थान की ओर गमन किये बिना मार्गज्ञाता भी मन चाहे शहर में नहीं पहुंच सकता, वैसे ही क्रिया चारित्र के बिना मनुष्य केवल ज्ञान से ही मुक्ति नहीं पा सकता | १०. नाविरतो दुश्चरितान् नाशान्तो नासमाहितः । नाशान्तमनसो वापि, प्रज्ञानेनंनमाप्नुयात् ॥ कठोपनिषद् ११३०१४ जो बुरे आचरणों से नहीं हटा है, जो अशान्त ( उच) है, असमाधियुक्त अशान्तमनवाला है, वह केवल प्रज्ञान- बुद्धिवाद से इस आत्मतत्त्व को नहीं पा सकता । — ११. चरणगुण विप्पड़ीणो, वुड्डद्द सुबहृषि जाणतो । - आवश्यक नियुक्ति ६७ जो साधक चारित्र के गुण से हीन है, वह बहुत से शास्त्र पढ़ लेने पर भी संसार समुद्र में डूब जाता है । १२. देशोन चोदपूर्वधारी मुनि भी चारित्र से हीन होकर नरक - निगोद में चले जाते हैं और मात्र अष्ट प्रवचनमाता के आराधक मुनि चारित्र के बल जाते हैं । से मुक्त हो जैनशास्त्र १३. जानन्ति तत्त्वं प्रभवन्ति कतु", — ते केपि लोके विरला मनुष्याः । - हृदयप्रवीप
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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