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वक्तृत्वकला के बीज
७. सवंसायमानां, लामचाविग्रीि ।
-- योगशास्त्र सब प्रकार के सावायोगों का त्याग करना ही चारित्र है। ८. चारित्र दो प्रकार से बनता है आपकी विचारधारा से और आपके अपने समय विताने के ढंग से ।
-जो० हाज २. चारित्रनिर्माण उससे होता है, जिसके लिए आप दृढ़ता
पुर्वक खड़े होते हैं । सम्मान उससे मिलता है, जिसके लिए आप गिर पड़ते हैं।
-धूलकोट चारित्र सम्बन्धी उन्नति का अर्थ है खुदी से खुदी को मिटाने की तरफ बढ़ना !
-हाईस्ले ११. चारित्र संग (साथ) में विकसित होता है और बुद्धि एकान्त में।
-गेटे १२. प्रत्येक मनुष्य के चरित्र के तीनरूप होते हैं-एक तो
जैसा कि वह स्वयं समझता है। दूसरा जैसा कि उसे दूसरे व्यक्ति समझते हैं और तीसरा जैसा कि वह वास्तव में है।
–अल्फान्सीकर १३. चारित्र के लिए उतनी कोई घातक चीज नहीं, जितने अपूर्ण कार्य ।
___ - ला जाऊं १४. चारित्र एक श्वेत कागज है जो एक बार कलंकित होने
पर पूर्ववत् उज्ज्वल होना कठिन है ।