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१. चरितकरं चारितं होइ ।
-उत्तराध्ययन २८ ३३
कर्मों के चय-राशि को रिक्त करने के कारण चारित्र कहलाता है !
२. चर्यते प्राप्यते मोक्षोऽनेनेति चारित्रम् |
३. चरिताऽऽज्ञ व चारित्रम् ।
चारित्र
इसके द्वारा मोक्ष प्राप्त किया जाता है न यह चारित कहलाता है।
४. चारितं समभावो ।
६.
समभाव ही चारित्र है । ५. सद्वाविरियसाधनं चारितं ।
- उत्तराध्ययन २८ २ टोका
प्रहण की हुई प्रतिज्ञा को शुद्ध पालना ही चारित्र है ।
योगसार
- पचास्तिकाय १०७
- विशुद्धिम- १।२६
श्रद्धा और वीर्य (शक्ति) का साधन (स्रोत) छारित्र है ।
तत्त्वरुचिः सम्यक्त्व, तत्त्वप्रख्यापकं पापक्रियानिवृत्तिश्चारित्रमुक्त
भवेज् ज्ञानम् । जिनेन्द्र ेण ॥
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..- ज्ञानार्णव, पृष्ठ ६१
जिनेन्द्र भगवान ने तत्त्वविषयक रुचि को सम्यग्दर्शन तत्त्वविषयक विशेषज्ञान को सम्यगुझान और पापमय क्रिया से निवृत्ति को सम्धकुचारित्र कहा है ।
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