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________________ - 15 १. चरितकरं चारितं होइ । -उत्तराध्ययन २८ ३३ कर्मों के चय-राशि को रिक्त करने के कारण चारित्र कहलाता है ! २. चर्यते प्राप्यते मोक्षोऽनेनेति चारित्रम् | ३. चरिताऽऽज्ञ व चारित्रम् । चारित्र इसके द्वारा मोक्ष प्राप्त किया जाता है न यह चारित कहलाता है। ४. चारितं समभावो । ६. समभाव ही चारित्र है । ५. सद्वाविरियसाधनं चारितं । - उत्तराध्ययन २८ २ टोका प्रहण की हुई प्रतिज्ञा को शुद्ध पालना ही चारित्र है । योगसार - पचास्तिकाय १०७ - विशुद्धिम- १।२६ श्रद्धा और वीर्य (शक्ति) का साधन (स्रोत) छारित्र है । तत्त्वरुचिः सम्यक्त्व, तत्त्वप्रख्यापकं पापक्रियानिवृत्तिश्चारित्रमुक्त भवेज् ज्ञानम् । जिनेन्द्र ेण ॥ --- ..- ज्ञानार्णव, पृष्ठ ६१ जिनेन्द्र भगवान ने तत्त्वविषयक रुचि को सम्यग्दर्शन तत्त्वविषयक विशेषज्ञान को सम्यगुझान और पापमय क्रिया से निवृत्ति को सम्धकुचारित्र कहा है । १६५
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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