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सिद्धान्त
१. अनुभव के आधार पर ही सिद्धान्त बनते हैं।
-नाथजी २. सिद्धान्त सड़क है, व्यक्ति उस पर चलनेवाला है।
सिद्धान्त बड़ा क्यों ? रास्ता है। व्यक्ति बड़ा क्यों ? बतानेवाला है। हीरा बड़ा क्यों ? रत्न है ! जौहरी बड़ा क्यों ? परीक्षक है । ऐसे ही गुरु-शिष्य, पिता-पुत्र
अ.र राजा-प्रजा के विषय में भी समझना चाहिये। ३. जं मयं सब्यसाहूणं, तं मयं सल्लकत्तणं ।
– कृतांग १५:२४ जो सिद्धान्त ममी साघुओं द्वारा मान्य है—वही माया, निदान
एवं मिथ्यादर्शनरूप शल्य को छेदनेवाला है। ४. महत्वपूर्ण सिद्धान्त लचीले होने आवश्यक हैं।
..-लिंकन ५. वास्तविकता के द्वारा ही सिद्धांत कार्यरूप में परिणत हो पाते हैं।
-कपर ६. मनुष्य की सच्चाई का एकमात्र प्रमाण यह है कि वह
अपने सिद्धान्त पर अपना सब कुछ स्वाहा करने को तत्पर रहे।
-लावेल ७. कोई भी मनुष्य सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में एक साथ नहीं रह सकता।
-काइल