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वक्तृत्वकला के बीज
उपरोक्त चर्चा सुनकर गौतम ने महावीर प्रभु से पूछा, उन्होंने भी यही उत्तर दिया । (आज यदि भिन्न-भिन्न संप्रदाय एक-दूसरे का खण्डन न करके स्याद्वाददृष्टि से चिन्तन करने लग जायें तो वैर-विरोध नष्ट होकर एकता हो जाय।)
-भगवती सूत्र २२५ के आधार पर तीन देवों के मामांकित द्वारों से तीन मनुष्य मंदिर में गए—ब्रह्मा, विष्णु र महेश का पृथक-पृ पक्ष मेकर वाद-विवाद करने लगे । अन्त में पुजारी द्वारा (शिल्पी की कारीगरी से ही तीन रूप दीखते हैं, वस्तुतः एक ही मूर्ति है 1) समझाये जाने पर शान्त हुए। रेल में भिन्न-भिन्न देशों के यात्री अंगूरखाना चाहते थे, लेकिन भाषा भिन्न होने से अरबी उसे एनब, तुर्की उजम, अंग्रेजी प्रेप्स और हिन्दुस्तानी अंगूर नाम से पुकार रहा था। स्टेशन आया और सबने एक ही वस्तु (अंगूर) खाई । वास्तव में भाषा की अपेक्षा से भिन्नता थी।