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________________ या भाग तोस कोष्ठक १५६. १ कथञ्चित् घट है, २ कथञ्चत् घट नहीं है, ३ कथंचित् घट है और कथंचित घट नहीं है, ४ कथंचित् घट अवक्तव्य है, ५ घंट कथंचित है और कथचित् अवक्तव्य है, ६ घट कथंचित् नहीं है और कथंचित् अवस्तब्ध है, ७ वट कथंचित् है, कथंचित नहीं है और कथंचित् अस्तव्य है । 5. तु गिया नगरी में ५०० शिष्यों युक्त स्थविर पधारे । श्रावक दर्शनार्थ गए एवं प्रश्न किया संजमेण भंते कि फले ? तवे किं फलं ? ( भगवन् ! संयम का क्या फल है एवं तप का क्या फल है ?) स्थविर 'संजमेणं अणण्हफले, तवेणं बोदाणफले । ( संयम का फल अनासव होना है और तप का फल कर्मबुद्धि है ! ) श्रावक - यदि ऐसा ही है तो साधु देवलोक में किससे उत्पन्न होते हैं ? — कालियपुत्त ने कहा - पूर्वतप से, महिल ने कहा - पूर्वसंयम से, आनन्द ने कहा -- पूर्वकर्म शेष रह जाने से, काश्यप ने कहा- द्रव्यादि विषय के संग से । भिन्न-भिन्न उत्तर सुनकर श्रावक कुछ सोच ही रहे थे कि ज्येष्ठस्थविर ने कहा- पूर्वसंयम, पूर्वतप, पूर्वकर्म और संग, स्वर्ग में उत्पन्न होने के ये चारों ही कारण है, अतः चारों मुनियों का उत्तर सत्य है | मात्र अपेक्षाभेद है । सुनकर श्रावक संतुष्ट हुए । :
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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