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________________ स्याद्वाद जण विणा लोगस्स वि, बवहारो सम्वहा ण णिघडइ । तस्स भुवणेमगुरुणो, णमो अणेगंत वायस्स ।। -सम्मतिप्तप्रकरण ३७० जिसके बिना विश्व का कोई भी व्यवहार सम्यग्रूप से घटित नहीं होता अतएव जो निभूत का एक मात्र मुकुरु सशाना उपदेशक है)—उस अनेकान्तबाद को मेरा नमस्कार है । जैनों का स्यादाद, वेदों में दृष्टि-सृष्टिवाद एवं पाश्चात्य विद्वानों के मत में थिओरी ऑफ रिलेटीविटी कहलाता ३. न याऽसियावाय विआगरेज्जा। -सूत्रकृतांग१४।१६ साधक स्याद्वाद से रहित (निश्चयकारी) वचन न बोले । विभज्जवायं च वियागरेज्जा, संकेज्ज याऽसंक्तिभावभिक्खू । —सूत्रकृतांग १४॥२२ यदि साधु किसी विषय में संदेहरहित हो तो भी उस विषय में अनाग्रही रहे तथा अनेकान्तवाद (भङ्गवाद-नयवाद) का अवलंबन लेकर कथन कर ! ५. भागे सिंहो मरो भागे, योऽर्थो भागद्वयात्मकः । तमभागं विभागेन, नरसिंहः प्रचक्षते ।। -शास्त्रवार्तासमुच्चय १५६
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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