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________________ निश्चय व्यवहार नय १. जई जिणमयं पवज्जह, ता मा बबहार-च्छिए मुयह ! एकेण विणा छिज्जई, तित्थं अण्णेण उण तच्चं ॥ समयसारवृत्ति, आगमसार यदि तुम जिनमत स्वीकार करना चाहते हो तो व्यवहार और निश्चय दोनों में से एक का भी त्याग न करी । व्यवहार के बिना तीर्थ एवं आचार का उच्छेद हो जाता है और निश्चय के बिना तत्त्व का हो नाश हो जाता है । ४ २. ववहारणयो भसदि, जीवो देहो य हवदि खलु इक्को ! णदु णिच्छयस्स जीवो, देहो य कदापि एकट्ठो ॥ - समयसारवृत्ति २७ व्यवहार नय से जीव (आत्मा) और देह एक प्रतीत होते है, किन्तु निश्चयदृष्टि से दोनों भिन्न हैं, कदापि एक नहीं हैं । ३. तह ववहारेण विणा परमत्युवएसणमसक्कं । -- समयसारवृत्ति व्यवहार (नय ) के बिना परमार्थ (शुद्ध आत्मतत्व) का उपदेश करना अशक्य है । ४. कत्ता भोत्ता आदा, पोग्गलकम्मस्स होदि बबहारो । - नियमसार १८ ― आत्मा पुद्गल कर्मों का कर्जा और भोक्ता है, यह मात्र व्यवहारदृष्टि है । * १५५
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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