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नय-प्रमाण
अर्थस्यानेकरूपस्य, धीः प्रमाणं तदंशधीः । नयो धर्मान्तरापेक्षी, दुर्णयोस्तन्निराकृतिः ॥ प्रमाण वस्तु के अनेक प्रमों का ग्रहण करता है और नय अन्य धमों की अपेक्षा रखता हुआ वस्तु के एक धर्म का ग्रहण करता है तथा दुनय एक धर्म का मण्डन करके दूसरे धमों का खण्डन
करता है। २. सप्तभङ ग्यात्मक वाक्यं, प्रमाण पूर्णबोध कृत् । स्यात्पदादपरोल्लेखि, वचोयच्चकधर्मगम् ॥
--उपाध्याय यशोविजयजी मातभंगीरूप वाक्य स्यात्पद से युक्त होने के कारण पूर्णबोध अर्थात् वस्तु के राब धर्मों का ज्ञान करता है अत: वह प्रमाण
है और जो एक धर्म विशेष का उल्लेख करता है, वह नय है । ३. सत्त नया पण्णत्ता, तं जहा.- नंगमे, संगहे, ववहारे,
उजुसुते, स, समभिरूडे, एवंभूते। - स्थानांग ७५५२ सात नय कहे हैं--- (१) नंगम (२) संग्रह, (३) व्यवहार, (४) ऋजुसूत्र, (५) शब्द, (६) समभिरूत(७) एवंभूत ।
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