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चौथा भाग तीसरा कोष्ठक
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स्वर्ण का इच्छुक था | सुनार स्वर्णघट को तोड़कर स्वर्णमुकुट बना रहा था। उसे देखकर पहला शोकातुर हुआ दूसरा खुश हुआ और तीसरा मध्यस्थ भाव में रहा । इनका कारण क्रमशः घट का नाश, मुकुट की उत्पत्ति और स्वर्ण की ध्रुवता थी ।। ५६ ।।
दूध मात्र के व्रतवाला दही नहीं खाता, दही के सतयाला दूध नहीं पीता और गोरस के व्रतवाला दूध-दही दोनों नहीं खा सकता - इसलिएं वस्तु उत्पाद-व्यय-प्रोव्य तीनों गुणों से 'युक्त है || ६०||