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चौथा भाग : तीसरा कोष्ठक
१५७ नृसिंहावतार शरीर के एक भाग में सिंह के समान है और दूसरे भाग में पुरुष के समान है । परस्पर दो विरुद्ध आकृतियों के धारण करने से प्रद्यपि वह भागरहित है, फिर भी विभाग करके लोग उसे "नरसिंह" कहते हैं। उत्पन्न दधिभावेन, नष्टं दुग्धतया पयः । गोरसत्वात स्थिरं जानन्, स्याद्वाद द्विड् जनोपि कः ।।
__ .- अध्यारमोपनिषद् गोरस में दही के भाव की उत्पत्ति है, दूध के भाव का नाम है और गोरसत्व की स्थिरता है, इस तत्त्व को समझनेवाला कोई भी व्यक्ति स्याद्वाद का विरोधी नहीं हो सकता । देखिएइच्छन् प्रधानं सत्त्वाद्य - विरुद्ध गुम्फितं गुणैः । सख्यिः संख्यावतां मुख्यो, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥१॥
- वीतरागस्तोत्र सांपदर्शन प्रधान-प्रकृति को सत्त्व आदि अनेक विरुद्ध गुणों से गुंफित मानता है। यह अनेकान्त (स्याद्वादी सिद्धान्त का खण्डन नहीं कर सकता। चित्रमेकमने के च, रूपं, प्रामाणिकं वदन् । योगो विशेषिको वापि, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥१॥ विज्ञानस्यैकमाकार, नानाकारकरम्बितम् । इच्छेस्तथागतः प्राशो, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥।। जातिवाक्यात्मकं वस्तु, वदन्ननुभवोचितम् । भट्टो वापि मुरारि, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ।।३।।