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१. दव्वं सल्लवखणयं, उप्पादव्ययधुवत्त संजुत्त ।
द्रव्य का लक्षण सत् है और वह सदा उत्पाद, व्यय एवं प्रवत्वभाव से युक्त होता है।
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द्रव्य
- पञ्चास्तिकाय १०
२. सव्वं चिय पड्समयं उपज्जइ नासए य निच्चं च । -विशेषावश्यक माध्य ५४४
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विश्व का प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है और साथ ही नित्य भी रहता है ।
- सूत्रकृतांग १|१|१६
३. नो य उप्पज्जए असं । असत् कभी सत् नहीं होता ।
४. अत्थित्त अत्थित्तं परिणमइ, नत्थित्त नत्थित्तं परिणमइ ।
-- भगवती ११३
अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तिरक में परिणत होता है अर्थात् सत् सदा सत् ही रहता है और असत् सदा असत् 1
५. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा,
जं जीवा अजीवा भविस्संति । अजीवा वा जीवा भविस्संति ||
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- स्थानाङ्ग १०