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________________ २ १. दव्वं सल्लवखणयं, उप्पादव्ययधुवत्त संजुत्त । द्रव्य का लक्षण सत् है और वह सदा उत्पाद, व्यय एवं प्रवत्वभाव से युक्त होता है। J द्रव्य - पञ्चास्तिकाय १० २. सव्वं चिय पड्समयं उपज्जइ नासए य निच्चं च । -विशेषावश्यक माध्य ५४४ - विश्व का प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है और साथ ही नित्य भी रहता है । - सूत्रकृतांग १|१|१६ ३. नो य उप्पज्जए असं । असत् कभी सत् नहीं होता । ४. अत्थित्त अत्थित्तं परिणमइ, नत्थित्त नत्थित्तं परिणमइ । -- भगवती ११३ अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तिरक में परिणत होता है अर्थात् सत् सदा सत् ही रहता है और असत् सदा असत् 1 ५. ण एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा, जं जीवा अजीवा भविस्संति । अजीवा वा जीवा भविस्संति || १५० - स्थानाङ्ग १०
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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