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________________ चौथा भाग : तीसरा कोष्ठक ६. यथा-यथा समायाति, संवित्तौ तत्त्वमुत्तमम् । तथा-तथा न रोचन्ते, विषया: मुलभा अपि । यथा-तथा न रोचन्ते, विषया: सुलभा अपि । तथा-तथा समायाति, संवित्तो तत्वमुत्तमम् । - इष्टोपदेश ३७-३८ बुद्धि में ज्यों-ज्यों उत्तमतत्व प्रवेश करता है त्यों-त्यों सुलभ होने पर भी इन्द्रियों के शब्दादि विषयों में रुचि नहीं रहती एवं ज्यों-ज्यों वह रुचि हटती है, त्यों-त्यों आत्मतत्त्व बुद्धि में प्रविष्ट होता है। ७. गहे तत्त्व ज्ञानी पुरुष, बात विचारि-विचारि । मथनहारि तजि छाछ को, माखन लेत निकारि | ८. समियंति मन्नमाणस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ । -आचारांग ॥५ आत्मापिता से जिस सत्त्व को सत्य माना जाए, उसके लिए वह तत्त्व सत्य ही है, फिर चाहे यह सत्य हो या असत्य ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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