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तीसरा कोष्ठक
१. तत्त्वं पारमार्थिक वस्तु ! -जनसिद्धान्तदीपिका २०१
पारमार्थिक वस्तु का नाम तत्त्व है । जिणपन्नत्त तत्त।
-आवश्यक ४ जिनेश्वर देव प्ररूपित संवर-निर्जरारूप धर्म ही तत्त्व है । ३. जीवाऽजीवा य बंधो य, पुण्णं पावासवो तहा । संबरो निज्जरा मोक्खो, संतेए तहिया नव ।
-उत्तराध्ययन २८।१४ (१) जीव, (२) अजीष, (३) बंध, (४) पुण्य, (५) पाप, (६) आस्रव (७) संवर, (८) निर्जरा, (९) मोक्ष—ये नवतत्त्व सत् पदार्थ हैं।
(स्थानांग ।।६६५ में भी नव सभाव पक्षार्थ कहे हैं) १. अंतरतच्चं जीवो, बाहिरतच्चं हवंति सेसाणि ।
-कार्तिकेयानुप्रेक्षा ३३४ जीव (आत्मा) अन्तस्तत्त्व है, बाकी सब द्रव्य बहिस्तत्त्व है। ५. एकाग्रो हि बहिर्वृत्ति-निवृत्तस्तत्त्वमीष्यते ।
एकाग्र होकर बाह्मवृत्तियों से निवृत्त होनेवाला व्यक्ति ही तत्त्व (वस्तु के रहस्य) को पाता है।
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