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________________ मिथ्यादृष्टि-मिथ्यात्वी १. मिच्छादिछि समादाना, सत्ता गच्छति दुग्गति । -धम्मपद ३१६ मिध्याहृष्टि को धारण करनेवाले जीव दुर्गति में जाते हैं । २. मिच्छादिट्ठी अणारिया,""संसारमणुरियति । -बहतांग २३२ मिथ्याहृष्टि अनार्य संसार में चक्र लगाते रहते हैं । ३. मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा हु हिंसगा। इय जे मरंसि जीषा, तेसिं पु] दुलहा वही ।। - उत्तराध्ययन ३६।२५५ जो जीव मिथ्यादर्शन में रक्त है, निदानसहित है एवं हिंसा में प्रवृत्त है .- ऐसी स्थिति में मरनेवालों को अग्रिम जन्म में सम्यक्त्य का मिलना कठिन है। ४. कूप्पवयणपासंडी, सन्थे उम्मग्गपदिठया । --उत्तराध्ययन २३१३३ 'फु' अर्थात् असत्य प्ररूपणा करनेवाले सभी पाखण्डी उन्मार्गगामी हैं। १४७
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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