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________________ चौथा भाग: तीसरा कोष्ठक १५१ न ऐसा कभी हुआ है, न होता है और न कभी होगा ही कि जो चेतन हैं, वे कभी अचेतन (जड़) हो जाएँ, और जो जड़ अचेतन हैं, वे चेतन हो जाएं ! J ६. गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा । लक्खणं पज्जवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे ॥ ६. - उत्तराध्ययन २८।६ पुद्गल में वर्ण- गंध आदि को तरह जिसमें गुण अवश्य रहे, वह द्रव्य है । जीव में चेतनता को तरह जो सदा द्रव्य के साथ ही रहे, वे गुण हैं तथा जो एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, आकार व संयोग - विभाग की तरह द्रव्य-गुण दोनों में रहे वह पर्याय है । 3. धर्माधर्माकाश- पुद्गुल- जीवास्तिकाया द्रव्याणि कालश्च । - जनसिद्धान्तदीपिका १४१-२ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और जीवास्तिकाय — ये द्रव्य हैं, और काल भी द्रष्प है । द्रव्यं पर्यायविद्युत, पर्याया द्रव्यवजिताः । क्व कदा केन किं रूपा दृष्टा मानेन केन च ॥ पर्यान के बिना द्रव्य और द्रव्यरहित पर्यायें कहाँ, कब, किसने, किस स्वरूप एवं प्रमाण से देखी ? अर्थात् किसी भी तरह नहीं मिलती । ६. निर्विशेषं हि सामान्यं भवेत् खरविषाणवत् । विशेषास्तद्र देव हि ॥ सामान्य रहितत्वेन, विशेष के बिना सामान्य गदद्दे के सींगवत् है और सामान्यरहित विशेष भी वैसा ही है ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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