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मिथ्यात्व के भेद
मिच्छादसण दुविहे पण्णत्ते , त जहा-अभिग्गयिमिच्छादशणं चेव, अणभिरग हियमिच्छादसणे वेब ।
-स्थानांग २११ मिथ्यादर्शन दो प्रकार का कहा है ... आभिग्रहिन और अनाभिअहिक । अभिम्गहियमणभिगाहिय, तह अभिनिवेसियं चेव।। संसइयमणाभोग, मिच्छत पंचहा होई ।। -योगशास्त्र २ श्लोक ३ के अन्तर में तथा धर्मसंग्रह अधि० २ मिथ्यात्व पात्र प्रकार का होता है
(१) आभिग्रहिक, (२) अनाभिनहिक, (३) आभिनिवेसिक, (४) सांसायिक, (५) अनाभोगिक । (१) हमारे शास्त्रों में जो कुछ कहा है, वही सच्चा है बाकी सब झूठ है—ऐसा मानना आभिग्रहिकमिथ्यिारव है । (२) सब देव, सब गुरु और सभी धर्म सच्चे हैं । विवेकशून्यता मे ऐसा मानना अनाभिहिमिथ्यात्व है । (३) अभिमानमश जान लेने पर भी जमालि की तरह झूठा आग्रह करना अनामिनिधेसिकमिथ्यात्व है।
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