________________
___३०
मिथ्यादर्शन-मिथ्यात्व
१. विपरीततत्त्वधद्धा मिथ्यात्वम् ।
- जैनसिद्धान्तदीपिका ४१६ जीवादि तन्वों को विपरीत समझना मिघ्यास्य है । . अदेवे देवबुद्धिर्या, गुरुधीरगुराबपि । अधर्म धर्मबुद्धिश्च, मिथ्यात्वं तद्विपर्ययात् ।।
-योगशास्त्र २३ राग-द्वेषयुक्त देव में भगवद्बुद्धि का होना, महाव्रतहीन गुरु में मद्गुरुबुद्धि का होना और अधर्म में धर्म बुद्धि का होना मिथ्यात्व, है क्योंकि यह विपरीत धारणा है । मिथ्यात्वं परमो रोगो, मिथ्यात्वं परमं तमः । मिथ्यात्वं परम: शत्र-मिथ्यात्वं परमं विषम् ।।
-योगशास्त्र मिथ्यात्व बड़ा भारी रोग है, घोर अन्धकार है, उत्कृष्ट शत्र
है और हलाहल जहर है। ४. मिच्छादिछि न सेवेय्य ।
-धम्मपद १६७. मनुष्य को मिथ्याधारणा से बचना चाहिए । ५. मइरस्य मिथ्यात्वयुतं न जीवितम् ।
मिध्यात्ययुक्त जीना मनुष्य के लिए उचित नहीं है ।
१४३