________________
१४५
चौथा भाग : दूसरा कोष्ठक
(४) देव-गुरु-धर्म में 'यह सच्चा है या वह सच्चा है। ऐसे शंकामील रहना सांशपिकमिथ्यात्व है। (५) एकेन्द्रियादि जीवों की तरह विशेषज्ञानरहित जीथों की
अशानदशा अनामोगिकमिथ्यात्व है। ३. दसविहे मिच्छतं पण्णत्ते , तं जहा
(१) अधम्मे धम्मसन्ना, (२) धम्मे अधम्मसना, (३) उमग्गे मग्गसना, (४) मग्गे उम्मग्गसन्ना, (५) अजीवेसु जीवसन्ना, (६) जीवेसु अजीवसन्ना, (७) असाहुसु साहुसन्ना, (८) साहुसु असाहुसन्ना, (६) अमुत्तेसु मुत्तसन्ना, (१०) मुत्ते सु अमुत्तसन्नर ।
-स्थानांग १०१७३४
दस प्रकार का मिथ्यात्व कहा है... (१) अधर्म को धर्म समझना, (२) धर्म को अधर्म समझना (३) अमुक्तिमार्ग को मुक्तिमार्ग समझना, (४) मुक्तिमार्ग को अमुक्ति मार्ग समझना, ६५) आवाश-परमाणु आदि अजीवों को जीव समझना, (६) पृथ्वी-पानी आदि जीवों को अजीव समझना, (७) असाधुओं को साधु समझना, (८) साधुओं को असाधु समझना, (6) अमुक्तों को मुक्त समझना, (१०) मुक्तों को अमुक्त समझना।
४. दुविहं लोइयमिच्छं, देवगयं गुरुगयं मुणेयध्वं । लोउत्तरं पि दुविहं. देवगयं गुरुगयं चेष ।
-वर्शमसुडि-प्रकरण ३५