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चौथा भाग दूसरा कोष्ठक
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१२. शङ्का काङ्क्षा विचिकित्सा मिध्यादृष्टिप्रशंसनम् । तत्संस्तवश्च पञ्चापि सम्यक्त्वं दूषयन्त्यमी ॥ योगशास्त्र २०१७
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(१) शङ्खा तवों में संदेह, (२) कांक्षा अन्यमत की अभि लाषा (३) विचिकित्मा धर्मफल में संदेह, (४) मिथ्यादृष्टि एवं व्रतभ्रष्टों की प्रशंसा ( ५ ) उन का संस्तव, प्रेम अथवा संसर्ग - ( ये पांन्त्र सम्यक्त्व को दूषित करनेवाले हैं - सम्यक्त्व के अतिभारदोष है ।)
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१३. चउबीसत्थएणं दंसणविसोहि जणयई ।
-- उस सध्ययन २६०६
चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करने से आत्मा सम्यक्त्व को विशेषरूप से शुद्ध करता है ।