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________________ ११६ 5. समकत्व के लक्षण, भूषण, दूषण और विशुद्धिशमसंवेग निर्वेदानुकम्पा स्तिस्थल वक्तृत्वकला के बीज लक्षणैः पञ्चभिः सम्यक्, सम्यक्त्वमुपलक्ष्यते । - - योगशास्त्र २०१५ ( १ ) शम - क्रोध आदि कषाय की शान्ति, (२) संवेग - मोक्ष कीअभिलापा, (३) निवेद संसार से विरक्ति, (४) अनुकम्पा - दया, (५) आस्तिकता - आत्मा कर्म परलोक आदि पर विश्वास — ये पांच सम्यक्त्व के लक्षण हैं । १०. परमत्थसंभवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वाचि । वावन्नकुदंसणबज्जणा य, सम्मत्तसद्दहणा उत्तराध्ययन २८ २८ (१) जीवादि पदार्थों का सही ज्ञान (२) तत्त्वज्ञानी गुरुओं की मेवा, (३) शिथिलाचारी एवं ( ४ ) कुदर्शनियों से बचते रहना – ४ सम्यक्त्व के अज्ञान हैं । ११. स्थैर्यं प्रभावना भक्ति कौशलं जिनशासने । तीर्थसेवा च पञ्चापि भूषणानि प्रचक्षते || योगशास्त्र २११६ (१) धर्म में स्थिरता, (२) धर्म की प्रभावना व्याख्यानादि द्वारा, (३) जिनशासन की भक्ति, (४) कुशलता - अज्ञानियों को धर्म समझाने में निपुणता, (५) चार तीर्थ की निबंध सेवा - ये पांच सम्यक्त्व के भूषण हैं । - १. पात्रयणी धम्मकड़ी, बाई निमित्त तवस्सी । विज्जा सिद्धो य कवी, अठ्ठेव पभावगा भणिया || - योगशास्त्र १२/१६ टीका
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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