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चौथा भाग दूसरा कोष्ठक
५. मिथ्यात्वत्यागतः शुद्ध, सम्यक्त्वं जायतेऽङ्गिनाम् ।
-अध्यात्मसार
७.
मिथ्यात्व का त्याग करने से प्राणियों को शुद्ध सम्यक्त्व मिलता है !
सम्यकत्व के भेद-
६. दुविहे सम्मदंसणे पण्णत्तं तं जहा निस्सगसम्मदंसणे चैव, अभिगमसम्मदंसणे चेव ।
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· स्थानाग २।१।७०
सम्यग्दर्शन दो प्रकार का कहा है – स्वाभाविक अपने आफ उत्पन्न होनेवाला और उपदेश से उत्पन्न होनेवाला ।
तच्च स्यादोपशमिक,
सास्वादनमथापरम् ।
क्षयोपशमिकं वेद्य' क्षायिक चेति पञ्चधा ॥
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सम्यक्त्व पांच प्रकार का है -- (१) ओमिक, (२) सास्वादन, (३) क्षायोपशमिक, (४) वेदक, (५) क्षायिक ।
८. निसग्गुबएस रुई, अणारुई सुत्त - बीयरुईमेव । अभिगम - वित्थाररुई, किरिया - संखेब-धम्मरुई ||
- उत्तराध्ययन २६।१६ सम्यक्त्व के देश भेव भी हैं -- (१) निसर्गरुनि, (२) उपदेशरुचि (२) आज्ञारुचि, (४) सूत्ररुचि, (५) बीजरूचि, (६) अभिगमरुचि, (७) बिस्तार रुचि, (८) क्रियारुचि, (६) संक्षेपरुचि, (१०) धर्म रुचि ।
१ सम्यक्त्व के अन्य भेवों का वर्णन देखिए 'मोक्ष प्रकाश ८' में ।