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सम्यग्दर्शन-सम्यक्त्व
१. तहियाणं तु भावाण, सम्भावे उवएसण । भावेण सहिंतस्स मम्मत्त तु त्रियाहियं ।।
- उत्तराध्ययन २०१५ स्वयं या उपदेश रो जीव-अजीव आदि सद्भावों में आन्तरिक
हार्दिक न होना स -सामगदर्भग है ! २. यथार्थतत्त्वश्रद्धा सम्यक्त्वम् ।
- जनसिद्धान्तदीपिका ५॥३ जीवादि तत्त्वों की यथार्थश्रद्धा करना सम्यग्दर्शन है । ३. या देवे देवताबुद्धि गुरौ च मुरुतामतिः । धर्मे च धर्मधी : शुद्धा, सम्यक्श्रद्धानमुच्यते ।।
—योगशास्त्र २ वीतरागदेव में देव-बुद्धि का होना, सद्गुरु में गुरु-बुद्धि का होना और मच्चे धर्म में धर्म-बुद्धि का होना मन्त्री श्रज्ञा
कहलाती है। ४. अरिहंतो महदेवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो। जिणपन्नत्तं तत्तं, इय सम्मत्तं मर गहियं ॥
-आवश्यक ४ अरिहन्त भगवान मेरे देव हैं, पावजीवन शुद्धसाधु मेरे गुरु हैं, जिनेश्वर देव का बताया हुआ तत्व मेरा धर्म है-यह सम्बक्व भने ग्रहण किया है।