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________________ नास्तिकों का कथन १. नत्थि पुष्णे व पावे बा, नस्थि लोए इओबरे । सरीरस्स विणासेणं, विणासो होइ देहिणो ।। - सूत्रकृतांग-१२१२ न' पुण्य है, न पाप है और न इस दृश्यमान-लोक के अतिरिक्त कोई संशार है। भारीर का नाश होते हो जीव का नाश हो जाता है। २. लोकयिता वदन्त्येवं, नास्ति जीवो न निर्व तिः । धर्माधमों न विद्यते, न फलं पुण्यपापयोः । -षड्वर्शन २० नास्तिक लोग वाहते हैं कि न जीव है, न मोक्ष है, न धर्म है. न अधर्म है और न ही पुण्य-गाप का कुछ फल मिलता है। ४. यावज्जीवेत् सुखं जीवेद्, ऋणं कृत्वा वृतं पिवेत् । भस्मीभूतस्य देहस्व, पुनरागमनं कुतः । नास्तिकों का कहना है कि जहाँ तक जीना हो, सुख से जीना चाहिये । ऋण करके भी घी पीते रहना चाहिए. क्योंकि भस्मीभूत यह शरीर दुबारा नहीं मिलता ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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