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चौथा भाग दूसरा कोष्टक
५. मणिलुठति पादाग्रे, काचः शिरसि धार्यते । क्रय-विक्रयवेलायां. काचः काचो, मणिः मणिः २३
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चाणक्यनीति १५/६
चाहे मणि पैरो की जूतियों में और कांग किन्तु शय-विषय के समय परीक्षक की ब कांच और मणि-म के रूप में प्रकट हो जाता है ।
जाः।
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६. फूटी हांडी आवाज म्युीिजं ।
में लगा लिया
- राजस्थानी कहावत