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परीक्षा का समय
१. हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नी, विशुद्धिः स्यामिकापि वा।।
...- रघवंश १५१० सोने की विद्धि एनं मिलावट का पता अग्नि में लगता है, ऐसे ही सत्पुरुषों की परीक्षा भी विपत्ति में ही होती है।
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२. अत्यधिक विरोधी परिस्थितियों में ही मनुष्य की परीक्षा होती है।
- धी मन्त्रिणां भिन्नसंधाने, भिषजां सन्निपातके । कर्मणि व्यज्यते प्रज्ञा, सुस्थे को वा न पण्डितः ।।
-हितोपदेश ३।१२१ संधि-भंग होने के समय मन्त्रियों को एनं सन्निपात के समय बंधों की बुद्धि का पता लगता है। स्वास्थ दशा में तो हर एक बुद्धिमान बन बैठता है। काकः कृष्णः पिकः कृष्णः, को भेदः पिक-काकयोः । वसन्तसमये प्राप्ते, काकः, काक: पिकः पिकः ॥ कावा और कोकिल दोनों काले हैं। उनके भेद की परीक्षा वसन्त ऋतु आने पर हो जाती है ।
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