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________________ चौथ । १७२ वक्तृत्वकला के बीज ५. ज्ञानीपुरुष महात्माओं की पहचान आँख से ही कर लेते हैं, क्योंकि रुपयों की तरह हीरों-पन्नों को बजाने की जरूरत नहीं पड़ती, उनकी परीक्षा नज़र से ही होती है। ६. सिल्थेण दोणपागं, कवि च एक्काए गाहाए ! - अनुयोगवार ११६ एक कण से ट्रोणभर पाक बी और एका गाथा मे कवि की परीक्षा हो जाती है। ७ संत शबहां परखिए, विपत पड़े घर-नार 1 शूरा तबही जाणिये, रण बाजे तलवार ।। -- राजस्थानी दोहा ८. जानीयात् प्रेषण भृत्यान, बान्धवान् व्यसनागमे । मित्र चापत्तिकाले तु, भार्यां च विभव - क्षये ।। -चाणक्यनीति १।११ काम के लिए भेजते समय सेवकों की, दुःख आने पर स्वजनों की, आपत्ति के समय मित्रों की और धन-क्षय होने पर स्त्री की परीक्षा करनी चाहिये । ६. शस्त्र की पहचान धार से होती है. वस्त्र की पहचान तार से होती है। इन्सान का धैर्य कैसा है ? इसकी पहचान जीत से नहीं, हार से होती है । __-.-स्वरसाधना से १०. प्राचीनकाल में सत्य-शील की जांच के लिये कई प्रकार की परीक्षाएं की जाती थीं । जैसे--(१) शीशी उबालकर
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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