SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौचा भाग दूसरा कोष्ठक ६७ का खमन एक तोला, गर्म मसाला एक तोला, मांण तीन तोला – इन सबमें एक पाव पानी मिलाकर फिर तेल उबलने पर दाल का बड़ा उसमें डालना । सेठानी को विधि का पूरा ज्ञान न होने से सेठजी किताब देखकर बोल रहे थे एवं सेठानी डिब्बों में से सामान निकाल रही थीं। लेकिन तराजू न होने के कारण अनुमान से काम लिया गया । नमक दो तोले के बदले चार तोला, हींग दो वाल की जगह सवा पाँच तोला एवं पानी पाव के बदले डेढ़ छटांक ही लिया गया। कोथमीर मिर्च आदि मिले नहीं और मोण डालना भूल से रह गया। इधर तेल पूरा गर्म हो ही नहीं पाया था, सेठानी ने उतावल करके ज्योंही उसमें बड़े डाले, तेल को कड़ाही फेन से भर गई। अब बड़े तले गये या नहीं-यह जानना कठिन हो गया । नौकर ने कहा- इसमें नींबू का रस डालिये । सेठजी ने जल्दी से उठकर नींबू निचोए तो तेल के छींटे उछलकर सेठानी के मुंह पर लगे और "हाय रे जल गई - जल गई" पुकारती हुई वह दूर भाग गई। अब सेठ ने खुद बैठकर वड़े उतारे लेकिन किसकी ताकत कि वह उन्हें खा सके । ( यह सब अनुभवहीनता का ही परिणाम है ।)
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy