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________________ चौथा भाग दूसरा कोष्ठक ६५ साधारण चोट आयी। उसने रेल्वे कंपनी पर मुकदमा किया, कंपनी के वकील "फिरोजशाह मेहता" थे। मुसाफिर ने हाथ को पट्टा लगा रखा था एवं कहता था कि मेरा हाथ ऊँचा नहीं उठ रहा है। वकील ने मजिस्ट्रेट के सामने बहस करते हुए उसको धीरे से पूछा- भाई ! चोट लगने से पहले तुम्हारा हाथ कैसे रहता था ? मुसाफिर ने बातों में भूलकर कह दिया कि ऐसे रहता था ! कहते-कहते हाथ भी उठा कर दिखा दिया। बस, केस हार गया । J एक व्यापारी कपड़े की भारी गटड़ी टॉड पर रख रहा था । भावीवण उसके हाथ ऊगर के ऊपर ही रह गये । अनेक उपचार किये गये सब निष्फल हुये । विवाह के प्रसंग में स्त्रियों के बीच एक अनुभवी ने उसकी धोती की लांग खींची। वस, खींचते ही हाथ ठिकाने आ गये । ११. एक बहन उठ नहीं सकती थी. एक अनुभवी ने उसके पास अचानक एक सांप छोड़ा, भयभीत बहन तत्काल उठ खड़ी हुई । १३. एक धनिकपुत्र ने कहीं रुई का बहुत बड़ा ढेर देख! | पागल होकर कहने लगा-कौन धुनेगा ? कौन करतेगा ? कौन बनेगा ? अनुभवी योगी ने कहा- वह तो जल गई। दिमाग ठीक हो गया ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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