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________________ चौथा भाग : दूसरा कोष्ठक ६३ हुआ । भय के संस्कारों से रात को तीन बजे नींद उड़ने लगी। -सरलमनोविज्ञान अनुमवी वैद्य-डॉक्टर-कोल आवि१. एक स्त्री के प्रसव-समय बच्चे का हाथ बाहर निकल आया। सारे चिन्तित हो गये । एक अनुभवी वैद्य ने उसके हाथ से बत्ती का स्पर्श किया, वस, बच्चे ने अपना हाथ वापस खींच लिया। २. युरोप में एक लड़की नींद के समय भयभीत हुआ करती थी । अनुभवी डाक्टर ने पूछा-क्या दीखता है ? लड़की ने कहा-सिंह । हंसकर डाक्टर ने समझाया कि वह तो मुझसे भी मिलने रोज आया करता है । तुम डरा मत करो, उसके साथ प्रेम किया करो ! लड़की रात को ज्योंही सोई, उसे सिंह दीखने लगा। वह उससे बाहें पसारकर प्रेम की चेष्टा करने लगी। फिर सदा के लिए उसका डरना बन्द हो गया । ३. सेठ का पेशाब बन्द हो गया । वैद्य ने तरबूज के छिलके घोटकर पिलाए, ठीक हो गया । पुन: बन्द हुआ । वहीं प्रयोग किया, लेकिन लाभ नहीं हुआ । अनुभवी ने गर्म करके पिलाने को कहा कारण सर्दी का मौसम था । ४. मावली (उदयपुर) में प्रभुलालजी वैध की पुत्री के पेट में असह्य दर्द था अतः खिला-पिलाकर उसे दवा से बेहोश करके सुलाना पड़ता था । वैद्यजी ने अन्त में वमन द्वारा उसके पेट से लाल सर्प-सर्पिणी निकाले ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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